पौड़ी(आरएनएस)। पौड़ी गढ़वाल सीट से बलूनी के ताल ठोकने से यहां मुकाबला काफी दिलचस्प हो गया है लेकिन भाजपा के अपने ही लोग अनिल बलूनी की जीत मे रोड़ा बन रहे हैं। यहां भाजपा के ही कुछ नेता अनिल बलूनी की जीत को लेकर संशय में हैं और ये नेता लगातार जनता के बीच यही कह रहे हैं कि बलूनी कभी यहां रहे ही नही और इन्होंने अपनी पत्नी को भी यहां नहीं रहने दिया ऐसे में आपका सांसद यहां के लोगों का क्या हित करेगा। इस में रही सही कसर भाजपा के प्रवक्ता व नेता पूरी कर रहे हैं। ये भी अपने बयानों में कह रहे हैं कि वोट तेा मोदी को देना अनिल बलूनी को नहीं, ऐसे में जनता में क्या संदेश जा रहा है यह भी सोचनयी है।
पौड़ी गढ़वाल संसदीय क्षेत्र में भाजपा ने राष्ट्रीय प्रवक्ता और राष्ट्रीय मीडिया प्रभारी अनिल बलूनी को चुनाव मैदान में उतारा है। बलूनी अब तक राज्यसभा में उत्तराखंड का प्रतिनिधित्व कर रहे थे। उन्हें पौड़ी गढ़वाल संसदीय क्षेत्र से लोकसभा का टिकट दिया गया। बलूनी के मुकाबले कांग्रेस ने पूर्व प्रदेश अध्यक्ष और पूर्व विधायक गणेश गोदियाल को टिकट दिया है। पौड़ी गढ़वाल सीट का इतिहास उतार-चढ़ाव का रहा है। 1989 की मंदिर आंदोलन की लहर से पहले पौड़ी गढ़वाल संसदीय क्षेत्र पर कांग्रेस का कब्जा ही रहा। 1989 में इस संसदीय क्षेत्र से भाजपा के उम्मीदवार और हेमवती नंदन बहुगुणा के भांजे भारतीय थल सेवा के सेवानिवृत्ति लेफ्टिनेंट जनरल भुवन चंद्र खंडूड़ी ने कांग्रेस के उम्मीदवार सतपाल महाराज को हराया था।
इसी के साथ भाजपा ने उत्तराखंड में अपना राजनीतिक दखल दिया था। केवल दो बार भाजपा यहां से चुनाव हारी। उसके बाद लगातार लोकसभा चुनाव जीतती रही है। 1997 में सतपाल महाराज कांग्रेस (तिवारी) के टिकट पर जीते थे और केंद्र की देवगौड़ा और गुजराल सरकार में राज्य मंत्री रहे।
उसके बाद 1999 में सतपाल महाराज भाजपा के उम्मीदवार भुवन चंद्र खंडूड़ी से चुनाव हारे और तब से इस संसदीय क्षेत्र पर भाजपा का कब्जा ही चला आ रहा है। अभी इस सीट से पूर्व मुख्यमंत्री तीरथ सिंह रावत सांसद हैं। वहीं, अस्सी के दशक तक यह संसदीय क्षेत्र राजनीति के दिग्गज हेमवती नंदन बहुगुणा की राजनीति का प्रमुख केंद्र था। उन्होंने इस सीट पर कभी भी भाजपा को कब्जा करने नहीं दिया। हेमवती नंदन बहुगुणा के बेटे विजय बहुगुणा ने भी इस सीट पर कांग्रेस के टिकट पर अपनी किस्मत आजमाई थी, परंतु वे चुनाव हार गए थे। बाद में बहुगुणा ने अपने पिता की पौड़ी गढ़वाल संसदीय सीट पर चुनाव लड़ने की बजाय टिहरी संसदीय क्षेत्र से कांग्रेस के टिकट पर 2007 का उपचुनाव लड़ा था और जीत गए थे। उसके बाद उनके बेटे साकेत बहुगुणा ने टिहरी सीट पर दो बार कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़ा था, परंतु भाजपा की उम्मीदवार टिहरी की रानी राज्यलक्ष्मी शाह से चुनाव नहीं जीत सके। आज पूरा बहुगुणा परिवार भाजपा में है। हेमवती नंदन बहुगुणा के बेटे विजय बहुगुणा के पुत्र सौरभ बहुगुणा भाजपा सरकार में कैबिनेट मंत्री हैं, जबकि हेमवती नंदन बहुगुणा के भांजे भुवन चंद्र खंडूड़ी की बेटी ऋतु भूषण खंडूड़ी उत्तराखंड विधानसभा की अध्यक्ष हैं और हाल ही में उनके भाई मनीष खंडूड़ी भी कांग्रेस छोड़कर भाजपा में शामिल हो गए हैं। इसके बाद इस बार भाजपा ने अनिल बलूनी को मैदान में उतारा लेकिन यहां भाजप के अपने ही लोग इनको विरोध करने लगे।
अनिल बलूनी में अपनी राजनीति की शुरूआत भी पौड़ी जिले से ही की। राज्य गठन के बाद उत्तराखंड में 2002 में पहले विधानसभा चुनाव हुये। जिसमें अनिल बलूनी भी चुनाव लड़े। साल 2002 में अनिल बलूनी ने बीजेपी के टिकट पर कोटद्वार विधानसभा से नोमिनेशन किया। इस बार उनकी नॉमिनेशन रद्द कर दिया गया, जिसके बाद अनिल बलूनी नोमिनेशन रद्द मामले को लेकर हाईकोर्ट से लेकर सुप्रीम कोर्ट तक गए। साल 2002 में कोटद्वार विधानसभा से कांग्रेस के सुरेंद्र सिंह नेगी जीते। इस बीच अनिल बलूनी नॉमिनेशन रद्द मामले में सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुनाया। सुप्रीम कोर्ट ने अनिल बलूनी नॉमिनेशन रद्द को गलत पाया। जिसके कारण 2002 के विधानसभा चुनाव कैंसिल हुये। इसके बाद कोटद्वार विधानसभा में 2005 में उपचुनाव हुआ। जिसमें अनिल बलूनी ने फिर से बीजेपी के टिकट पर चुनाव लड़ा। इस उपचुनाव में भी अनिल बलूनी को हार का सामना करना पड़ा। इसके बाद अनिल बलूनी ने ग्राउंड पर कोई चुनाव नहीं लड़ा। इस चुनाव में हारने के बाद अनिल बलूनी ने दिल्ली की ओर रुख किया। दिल्ली में पत्रकारिता करते हुए अनलि बलूनी वहां के मुख्यमंत्री साहिब सिहं वर्मा के करीबी बन गये और साहिब सिंह के साथ ही रहे। जब साहिब सिंह वर्मा गुंजराज के राज्यपाल बने तो अनिल बलूनी उनके ओएसडी बन गये। उस समय वहां भाजपा की ही सरकार थी तो इसी दौरान उन्होंने भाजपा नेताओें अमित शाह और नरेन्द्र भण्डारी से नजदीकियां बढ़ाई और अमित शाह के खास लोगों की सूची में शामिल हो गये। इसी दौरान अनिल बलूनी, नरेंद्र मोदी के करीब आये। जिसके बाद उन्हें साल 2014 में बीजेपी में बड़ी जिम्मेदारी मिली। 2014 में बलूनी को राष्ट्रीय प्रवक्ता बनाया गया। इसके बाद उन्हें राष्ट्रीय मीडिया प्रमुख की जिम्मेदारी सौंपी गई। जिसमें उन्होंने अभूतपूर्व काम किया। जिसका उन्हें इनाम मिला। अनिल बलूनी को 10 मार्च 2018 में उत्तराखंड से राज्यसभा भेजा गया। साल 2024 में राज्यसभा कार्यकाल पूरा होने के बाद अब मोदी शाह उन्हें लोकसभा चुनाव में उतारा है लेकिन भाजपा के लोग ही उनको पचा नहीं पा रहे हैं, भाजपा प्रवक्ता मनवीर चौहान खुद यह मानते हैं कि पौड़ी सीट पर कांटे की टक्कर है और वहां भाजपा को नुकसान हो सकता है। वह यह भी मानते हैं कि अनिल बलूनी को भाजपा के ही लोग नुकसान पहुचा सकते हैं।